|
निम्नलिखित
प्रश्नों का उत्तर
एक-दो पंक्तियों
में दीजिए − 1 रंग की शोभा
ने क्या कर दिया? उत्तर- दिशा
में लाल रंग बिखर गया, पूरी लाली छा गई परन्तु
थोड़े समय के लिए। 2.बादल किसकी
तरह हो गए थे। उत्तर-बादल
एकदम सफ़ेद रूई
की तरह हो गए थे। 3.लोग किन-किन चीज़ों
का वर्णन करते
हैं? उत्तर- लोग
आकाश, पृथ्वी,
जलाशयों का
वर्णन करते हैं। 4.कीचड़ से क्या
होता है? उत्तर- कीचड़
से कपड़े गन्दे
होते हैं, शरीर पर भी मैल
चढ़ता है। परन्तु
कीचड़ में कमल
जैसा फूल भी होता
है। 5.कीचड़ जैसा रंग
कौन लोग पंसद
करते हैं? उत्तर- कीचड़
जैसा रंग कला प्रेमी, कलाकार और फोटोग्राफर
बहुत पसंद करते
हैं। गत्तो
दिवारों और
वस्त्रों पर यह
रंग पसंद करते
हैं। 6.
नदी के किनारे
कीचड़ कब सुंदर
दिखता है? उत्तर- कीचड़
जब सूख जाता है
तो उसमें आड़ी
तिरछी दरारे पड़
जाती हैं। वह देखने
में बहुत सुन्दर
लगता है जैसे सुखाया हुआ
हो। कभी-कभी किनारे
पर समतल फैला कीचड़
भी सुन्दर लगता
है। 7. कीचड़ कहाँ सुदंर लगता
है? उत्तर- सूखा
कीचड़ सुंदर लगता
है जब उसके ऊपर
बगुले, पक्षी,
गाय, बैल,
भैंस, पोड़, बकरी सीगों
आदि के चिह्न बने
हुए हो, तो वह
और भी सुन्दर लगता
है। 8.'पंक' और 'पंकज' शब्द
में क्या अंतर
है? उत्तर-'पंक' का अर्थ
है कीचड़ और पंक् + अज अर्थात
कीचड़ में उत्तपन्न
अर्थात कमल। पंक
अच्छा नहीं लगता
जबकि पंकज को सिर
माथे पर लगाया
जाता है। निम्नलिखित
प्रश्न का उत्तर
(25-30 शब्दों में) लिखिए − 1.कीचड़ के प्रति
किसी को सहानुभूति
क्यों नही
होती ? उत्तर - लोग
उपरी सुंदरता
देखते हैं। कीचड़
के प्रति किसी
को सहानुभूति
नहीं होती क्योंकि
इसे गंदगी का प्रतीक
मानते हैं। कोई
कीचड़ में नहीं
रहना चाहता, न कपड़े, न
शरीर गंदा करना
चाहता है। कभी
किसी कवि ने भी
कीचड़ के सौंदर्य
के बारे में नहीं
लिखा। 2.
ज़मीन ठोस होने
पर उस पर किनके
पदचिह्न अंकित
होते हैं ? उत्तर - गीले
कीचड़ में जब पशु
पक्षियों
के पैरों के चिह्न
बन जाते हैं, जब ये सूख जाते
हैं तो बहुत सुन्दर
लगते हैं। लड़ते
हुए पाड़ो
के पैरो के चिह्न
की तो शोभा निराली
होता है। उनके
सींगों से कीचड़
जगह-जगह उखड़
जाता है तो सूखने
पर बहुत अच्छा
लगता है। 3. मनुष्य
को क्या भान होता
है जिससे वह कीचड़
का तिरस्कार न
करता ? उत्तर - जब मनुष्य
को यह भान हो जाता
कि उसका अन्न और
कई खाद्य पदार्थ
कीचड़ में ही उत्पन्न
होते हैं तो वह
कीचड़ का तिरस्कार
नहीं करते। 4.
पहाड़ लुप्त
कर देने वाले कीचड़
की क्या विशेषता
है ? उत्तर - पहाड़
लुप्त कर देने
वाले कीचड़ की
विशेषता है कि
बहुत अधिक कीचड़
होता है ऐसा कीचड़
गंगा नदी के किनारे
खंमात की खाड़ी
सिंधु के किनारे
पर होता है। निम्नलिखित
प्रश्न का उत्तर
(50-60 शब्दों में) लिखिए − 1. कीचड़ का रंग
किन-किन लोगों
को खुश करता है ? उत्तर - कीचड़
में सौंदर्य की
कमी नहीं है। इसका
सौंदर्य पुस्तकों
के गत्तों पर, दिवारों पर, कच्चे
मकानों पर लोग
इस रंग को पंसद
करते हैं। कपड़ों
के रंग में भी इसे
पंसद किया
जाता है। कला प्रेमियों
को यह पंसद
आता है। फोटोग्राफर
और मिट्टी के बरतन
बनाने वालों को
भी रंग अच्छा लगता
है। 2. कीचड़ सूखकर
किस प्रकार के
दृश्य उपस्थित
करता है? उत्तर - कीचड़
सूखकर टूकड़ों में
बट जाता है, उसमें दरार पड़ जाती है।
इनका आकार ढेडा
मेढ़ा होने से
बहुत सुन्दर लगता
है। समतल किनारों
का कीचड़ भी सूखता
है तो बहुत सुन्दर
लगता है क्योंकि
इस पर पशु पक्षियों
के पैर के चिह्न
बन जाते हैं, जो बहुत सुन्दर
लगते हैं। ऐसा
दृश्य लगता है
कि यहाँ कोई युद्ध
लड़ा गया हो। 3. सूखे हुए
कीचड़ का सौंदर्य
किन स्थानों पर
दिखाई देता है? उत्तर - सूखे हुए कीचड़
का सौंदर्य नदियों के
किनारे दिखाई
देता है। कीचड़
जब थोड़ा सूख जाता
है तो उस पर छोटे-छोटे
पक्षी बगुले आदि
घूमने लगते हैं।
कुछ अधिक सूखने
पर गाय, भैंस
पांडे, भेड़,
बकरियाँ भी चलने-फिरने
लगते हैं। जब ये
जानवर यहाँ लड़ते
हैं तो कीचड़ उछल-उछल
कर उखड़ जाती
है। ये सारा दृश्य
बहुत सुन्दर लगता
है। 4. कवियों
की धारणा को लेखक
ने युक्तिशून्य
क्यों कहा है ? उत्तर - कवियों की
धारणा केवल बाहरी
सौंदर्य पर ध्यान
देते हैं आंतरिक
सौंदर्य की ओर
उनका ध्यान नहीं
जाता। पंकज शब्द
बहुत अच्छा लगता
है और पंक कहते
ही बुरा सा लगता
है। वे कमल को अपनी
रचना में रखते
हैं परन्तु पंक
को अपनी रचना में
नहीं लाते हैं।
वे इसका तिरस्कार
करते हैं। वे प्रत्यक्ष
सोंदर्य की
प्रशंसा करते
हैं परन्तु उसको
उत्पन्न करने
वाले कारकों का
सम्मान नहीं करते।
कवियों का
ऐसा दृष्टिकोण
उनकी युक्तिशुन्यता
को दर्शाता है। |
|||||||||||||||
वैज्ञानिक
चेतना के वाहक
सी वी रामन
|
||||||||||||||||
|
निम्नलिखित
प्रश्नों के उत्तर
एक-दो पंक्तियों
में दीजिए − प्रश्न
- रामन् भावुक
प्रकृति प्रेमी
के अलावा और क्या
थे? उत्तर
- रामन् भावुक
प्रकृति प्रेमी
के अलावा एक सुयोग्य
वैज्ञानिक एवं
अनुसंधानकर्ता
थे। प्रश्न
- समुद्र को देखकर
रामन् के मन
में कौन-सी दो जिज्ञासाएँ
उठीं? उत्तर
- समुद्र को देखकर
रामन् के मन
में दो जिज्ञासाएँ
उठीं - 1. समुद्र
के पानी का रंग
नीला ही क्यों
होता है? 2. वह
रंग कोई और क्यों
नहीं होता है? प्रश्न
- रामन् के
पिता ने उनमें
किन विषयों की
सशक्त नींव डाली? उत्तर
- रामन् के
पिता ने उनमें
गणित और भौतिकी
की सशक्त नींव
डाली। प्रश्न
- वाद्ययंत्रों
की ध्वनियों
के अध्ययन के द्वारा
रामन् क्या
करना चाहते थे? उत्तर
- रामन् वाद्ययंत्रों
की ध्वनियों
के द्वारा उनके
कंपन के पीछे छिपे
रहस्य की परतें
खोलना चाहते थे। प्रश्न
- सरकारी नौकरी
छोड़ने के पीछे
रामन् की क्या
भावना थी? उत्तर
- सरकारी नौकरी
छोड़ने के पीछे
रामन् की भावना
थी कि वह पढ़ाई
करके विश्वविद्यालय
के शिक्षक बनकर, अध्ययन अध्यापन
और शोध कार्यों
में अपना पूरा
समय लगाना चाहते
थे। प्रश्न
- रामन् प्रभाव
की खोज के पीछे
कौन-सा सवाल हिलोरें ले
रहा था? उत्तर
- रामन् का
सवाल थी कि आखिर
समुद्र के पानी
का रंग नीला ही
क्यों है? इसके लिए उन्होंने
तरल पदार्थ पर
प्रकाश की किरणों
का अध्ययन किया। प्रश्न
- प्रकाश तरंगों
के बारे में आइंस्टाइन
ने क्या बताया? उत्तर
- प्रकाश तरंगों
के बारे में आइंस्टाइन
ने बताया था कि
प्रकाश अति सूक्ष्म
कणों की तीव्र
धारा के समान है।
उन्होंने इन कणों
की तुलना बुलेट
से की और इन्हें
फोटॉन नाम
दिया। प्रश्न
- रामन् की
खोज ने किन अध्ययनों को
सहज बनाया? उत्तर
- रामन् की
खोज ने पदार्थों
के अणुओं और
परमाणुओं
के बारे में खोज
के अध्ययन को सहज
बनाया। निम्नलिखित
प्रश्नों का उत्तर
(25-30 शब्दों में) लिखिए − प्रश्न
- कॉलेज के
दिनों में रामन्
की दिली इच्छा
क्या थी? उत्तर
- कॉलेज के
दिनों में रामन्
की दिली इच्छा
थी कि वे नए-नए वैज्ञानिक
प्रयोग करें, पूरा जीवन शोधकार्यों
में लगा दें। उनका
मन और दिमाग विज्ञान
के रहस्यों को
सुलझाने के लिए
बैचेन रहता
था। उनका पहला
शोधपत्र फिलॉसॉफिकल
मैग़जीन में
प्रकाशित हुआ। प्रश्न
- वाद्ययंत्रों
पर की गई खोजों
से रामन् ने
कौन-सी भ्रांति
तोड़ने की कोशिश
की? उत्तर
- रामन् ने
देशी और विदेशी
दोनों प्रकार
के वाद्ययंत्रों
का अध्ययन किया।
इस अध्ययन के द्वारा
वे पश्चिमी देशों
की भ्रांति को
तोड़ना चाहते
थे कि भारतीय वाद्ययंत्र
विदेशी वाद्ययंत्रों
की तुलना में घटिया
है। प्रश्न
- रामन् के
लिए नौकरी संबंधी
कौन-सा निर्णय
कठिन था? उत्तर
- रामन् भारत
सरकार के वित्त
विभाग में अफसर
थे। परन्तु एक
दिन प्रसिद्ध
शिक्षा शास्त्री
सर आशुतोष मुखर्जी
ने रामन् से
नौकरी छोड़कर
कलकत्ता विश्वविद्यालय
में प्रोफेसर
का पद लेने के लिए
आग्रह किया। इस
बारे में निर्णय
लेना उनके लिए
अत्यंत कठिन हो
गया क्योंकि सरकारी
नौकरी की बहुत
अच्छी तनख्वाह
अनेकों सुविधाएँ
छोड़कर कम वेतन, कम सुविधाओं
वाली नौकरी का
फैसला मुश्किल
था। परन्तु रामन् ने सरकारी
नौकरी छोड़कर
विश्वविद्यालय
की नौकरी कर ली
क्योंकि सरस्वती
की साधना उनके
लिए महत्वपूर्ण
थी। प्रश्न
- सर चंद्रशेखर
वेंकट रामन् को समय-समय
पर किन-किन पुरस्कारों
से सम्मानित किया
गया? उत्तर
- सर चंद्रशेखर
वेंकट रामन् को समय-समय
पर निम्नलिखित
पुरस्कारों से
सम्मानित किया
गया − 1.
1924 में रॉयल
सोसायटी की
सदस्यता प्रदान
की गई। 2.
1929 में उन्हें सर
की उपाधि दी गई। 3.
1930 में विश्व का
सर्वोच्च पुरस्कार
नोबल पुरस्कार
प्रदान किया गया। 4. रॉयल सोसायटी
का ह्यूज पदक
प्रदान किया गया। 5. फि़लोडेल्फि़या
इंस्टीट्यूट
का फ्रेंकलिन
पदक मिला। 6. सोवियत संघ
का अंतर्राष्ट्रीय
लेनिऩ पुरस्कार
मिला। 7.
1954 में उन्हें देश
के सर्वोच्च सम्मान
भारत रत्न से सम्मानित
किया गया। प्रश्न
- रामन् को
मिलनेवाले
पुरस्कारों ने
भारतीय-चेतना
को जाग्रत किया।
ऐसा क्यों कहा
गया है? उत्तर
- रामन् को
समय पर मिलने वाले
पुरस्कारों ने
भारतीय-चेतना
को जाग्रत किया।
इनमें से अधिकाँश
पुरस्कार विदेशी
थे और प्रतिष्ठित
भी। अंग्रेज़ों
की गुलामी के दौर
में एक भारतीय
वैज्ञानिक को
इतना सम्मानित
दिए जाने से भारत
को आत्मविश्वास
और आत्मसम्मान
मिला। इसके लिए
भारतवासी स्वयं
को गौरवशाली अनुभव
करने लगे। निम्नलिखित
प्रश्नों का उत्तर
(50-60 शब्दों में) लिखिए − प्रश्न
- रामन् के
प्रारंभिक शोधकार्य
को आधुनिक हठयोग
क्यों कहा गया
है? उत्तर
- रामन् के
समय में शोधकार्य
करने के लिए परिस्थितियाँ
बिल्कुल विपरीत
थीं। वे सरकारी
नौकरी करते थे, समय का अभाव रहता
था। परन्तु फिर
भी रामन् फुर्सत
पाते ही बहू बाज़ार
चले जाते। वहाँ
इंडियन एसोसिएशन
फॉर द कल्टीवेशन
ऑफ साइंस की
प्रयोगशाला में
काम करते। इस प्रयोगशाला
में साधनों का
अभाव था लेकिन
रामन् इन काम
चलाऊ उपकरणों
से भी शोध कार्य
करते रहें। ऐसे
में अपनी इच्छाशक्ति
के बलबूते
पर अपना शोधकार्य
करना आधुनिक हठयोग
ही कहा जा सकता
है। प्रश्न
- रामन् की
खोज रामन्
प्रभाव क्या है? स्पष्ट कीजिए। उत्तर
- रामन् के
मस्तिष्क में
समुद्र के नीले
रंग को लेकर जो
सवाल 1921 की समुद्र
यात्रा के समय
आया, वह ही
रामन
प्रभाव खोज बन
गया। अर्थात रामन् द्वारा
खोजा गया सिद्धांत, इसमें जब एक वर्णीय प्रकाश
की किरण किसी तरल
या ठोस रवेदार
पदार्थ से गुजरती
है तो उसके वर्ण
में परिवर्तन
आ जाता है। एक वर्णीय प्रकाश
की किरण के फोटॉन जब तरल
ठोस रवे से
टकराते हैं
तो उर्जा का
कुछ अंश खो देते
हैं या पा लेते
हैं दोनों स्थितियों
में रंग में बदलाव
आता है। प्रश्न
- “रामन् प्रभाव” की
खोज से विज्ञान
के क्षेत्र में
कौन-कौन से कार्य
संभव हो सके? उत्तर
- “रामन् प्रभाव” की
खोज से विज्ञान
के क्षेत्र में
निम्नलिखित कार्य
संभव हो सके − 1. विभिन्न
पदार्थों के अणुओं और परमाणुओं की
आंतरिक संरचना
का अध्ययन सहज
हो गया। 2. रामन् की खोज
के बाद पदार्थों
की आणविक और परमाणविक
संरचना के अध्ययन
के लिए रामन्
स्पेक्ट्रोस्कोपी
का सहारा लिया
जाने लगा। 3. रामन् की तकनीक
एकवर्णीय
प्रकाश के वर्ण
में परिवर्तन
के आधार पर पदार्थों
के अणुओं और
परमाणुओं
की संरचना की सटीक
जानकारी देने
लगी। 4. अब
पदार्थों का संश्लेषण
प्रयोगशाला में
करना तथा अनेक
उपयोगी पदार्थों
का कृत्रिम रुप
में निर्माण संभव
हो गया। प्रश्न
- देश को वैज्ञानिक
दृष्टि और चिंतन
प्रदान करने में
सर चंद्रशेखर
वेंकट रामन् के महत्वपूर्ण
योगदान पर प्रकाश
डालिए। उत्तर
- सर चंद्रशेखर
वेंकट रामन् ने देश
को वैज्ञानिक
दृष्टि और चिंतन
प्रदान करने में
अत्यंत महत्वपूर्ण
योगदान दिया।
उन्होंने सरकारी
नौकरी छोड़कर
वैज्ञानिक कार्यों
के लिए जीवन समर्पित
कर दिया। उन्होंने
रामन् प्रभाव
की खोज कर नोबल
पुरस्कार प्राप्त
किया। बंगलोर
में शोध संस्थान
की स्थापना की, इसे रामन्
रिसर्च इंस्टीट्यूट
के नाम से जाना
जाता है। भौतिक
शास्त्र में अनुसंधान
के लिए इंडियन
जनरल ऑफ फिजिक्स
नामक शोद पत्रिका
आरंभ की, करेंट साइंस नामक
पत्रिका भी शुरु
की, प्रकृति
में छिपे रहस्यों
का पता लगाया। प्रश्न
- सर चंद्रशेखर
वेंकट रामन् के जीवन
से प्राप्त होने
वाले संदेश को
अपने शब्दों में
लिखिए। उत्तर
- सर चंद्रशेखर
वेंकट रामन् के जीवन
से हमें सदैव आगे
बढ़ते रहने का
संदेश मिलाता
है। व्यक्ति को
अपनी प्रतिभा
का सदुपयोग करना
चाहिए। भले ही
इसके लिए रामन्
की तरह सुख-सुविधाओं को
छोड़ना पड़े।
इच्छा शक्ति हो
तो राह निकल आती
है। रामन्
ने संदेश दिया
है कि हमें अपने
आसपास घट रही विभिन्न
प्राकृतिक घटनाओं की
छानबीन वैज्ञानिक
दृष्टि से करनी
चाहिए। प्रश्न
- निम्नलिखित का
आशय स्पष्ट कीजिए
− उत्तर
- 1 उनके लिए
सरस्वती की साधना
सरकारी सुख-सुविधाओं से
कहीं अधिक महत्त्वपूर्ण
थी। डॉ. रामन् सरकारी
सुख-सुविधाओं
का त्याग करके
भी सरस्वती अर्थात
शिक्षा पाने और
देने के काम को
अधिक महत्त्वपूर्ण
मानते थे और उन्होंने
यही किया भी। 2 हमारे पास
ऐसी न जाने कितनी
ही चीज़ें बिखरी
पड़ी हैं, जो अपने पात्र
की तलाश में हैं। हमारे
आस-पास के वातावरण
में अनेक प्रकार
की चीज़ें बिखरी
होती हैं। उन्हें
सही ढंग से सँवारने वाले
व्यक्ति की आवश्यकता
होती है। वही उनको नया रुप
देता है। 3 यह अपने
आपमें एक आधुनिक
हठयोग का उदाहरण
था। डॉ. रामन् किसी
न किसी प्रकार
अपना कार्य सिद्ध
कर लेते थे। वे
हठ की स्थिति तक
चले जाते थे। योग
साधना हठ का अंश
रहता है। रामन्
मामूली उपकरणों
से भी अपनी प्रयोगशाला
का काम चला लेते
थे। यह एक प्रकार
का हठयोग ही था। |
|||||||||||||||
धर्म की
आड़ |
||||||||||||||||
|
निम्नलिखित
प्रश्न का उत्तर
एक-दो पंक्तियों
में दीजिए − 1 आज धर्म के
नाम पर क्या-क्या
हो रहा है? उत्तर
- आज धर्म के नाम
पर लोगों को भड़काया
जा रहा है, उन्हें
ठगा जा रहा
है और दंगे फसाद
भी हो रहे हैं। 2 धर्म के व्यापार
को रोकने के लिए
क्या उद्योग होने
चाहिए? उत्तर
- धर्म के व्यापार
को रोकने के लिए
दृढ़ विश्वास
और विरोधियों
के प्रति साहस
से काम लेना चाहिए।
कुछ लोग धुर्तता
से काम लेते हैं, उनसे
बचना चाहिए और
बुद्धि का प्रयोग
करना चाहिए। 3 लेखक के अनुसार
स्वाधीनता आंदोलन
का कौन सा दिन बुरा
था? उत्तर
- लेखक के अनुसार
स्वाधीनता आंदोलन
का वह दिन सबसे
बुरा था जिस दिन
स्वाधीनता के
क्षेत्र में खिलाफत, मुल्ला
मौलवियों
और धर्माचार्यों
को स्थान दिया
जाना आवश्यक समझा
गया। इस प्रकार
स्वाधीनता आंदोलन
ने एक कदम और पीछे
कर लिया जिसका
फल आज तक भुगतना
पड़ रहा है। 4 साधारण से
साधारण आदमी तक
के दिल में क्या
बात अच्छी तरह
घर कर बैठी
है? उत्तर
- साधारण आदमी धर्म
के नाम पर उबल
पड़ता है, चाहे
उसे धर्म के तत्वों
का पता न हो क्योंकि
उनको यह पता
है कि धर्म की रक्षा
पर प्राण तक दे
देना चाहिए। 5.धर्म के स्पष्ट
चिह्न क्या हैं? उत्तर
- शुद्ध आचरण और
सदाचार धर्म के
स्पष्ट चिह्न
हैं। यदि पूजा
पाठ करने के साथ
ये नहीं हैं तो
धर्म नहीं है।
बिना पूजा किए
भी यदि ये व्यवहार
हैं तो वह व्यक्ति
धार्मिक कहलाने
योग्य है। निम्नलिखित
प्रश्न का उत्तर
(25-30 शब्दों में)
लिखिए − 1.चलते-पुरज़े
लोग धर्म के नाम
पर क्या करते हैं? उत्तर
- चलते-पुरज़े लोग
धर्म के नाम पर
लोगों को मुर्ख
बनाते हैं और अपना
स्वार्थ सिद्ध
करते हैं, लोगों
की शक्तियों
और उनके उत्साह
का दुरूपयोग
करते हैं। साधारण
लोग धर्म का सही
अर्थ और उसके तत्वों
को समझ नहीं पाते
और उनकी इस अज्ञानता
का लाभ चालाक लोग
उठा लेते हैं।
उन्हें आपस में
ही लड़ाते रहते
हैं। 2.चालाक लोग
साधारण आदमी की
किस अवस्था का
लाभ उठाते हैं? उत्तर
- चालाक लोग साधारण
आदमी की धर्म भीरूता, अज्ञानता
का लाभ उठाते हैं।
साधारण आदमी उनके
बहकावे में आ जाते
हैं। चालाक आदमी
उसे जिधर चाहे
उसे मोड़ देता
है और अपना काम
निकाल लेता है।
साथ ही उस पर अपना
प्रभुत्व भी जमा
लेता है। 3.आनेवाला समय किस प्रकार
के धर्म को नहीं
टिकने देगा? उत्तर
- आने वाला समय दिखावे वाले
धर्म को नहीं टिकने देगा।
नमाज पढ़ना, शंख
बजाना, नाक
दबाना यह धर्म
नहीं है, शुद्ध
आचरण और सदाचार
धर्म के लक्षण
हैं। पूजा के ढ़ोंग का धर्म
आगे नहीं टिक
पाएगा। ऐसी पूजा
तो ईश्वर को रिश्वत
की तरह होती है। 4.कौन-सा कार्य
देश की स्वाधीनता
के विरूद्ध समझा
जाएगा? उत्तर
- हमारा देश स्वाधीन
है। इसमें अपने-अपने
धर्म को अपने ढ़ँग से मनाने की पूरी
स्वतंत्रता है।
यदि कोई इसमें
रोड़ा बनता
है अथवा टाँग अड़ाता है
तो वह कार्य देश
की स्वाधीनता
के विरूद्ध समझा
जाएगा। 5.पाश्चात्य
देशों में धनी
और निर्धन लोगों
में क्या अंतर
है? उत्तर
- पाश्चात्य देशों
में धनी और निर्धन
के बीच गहरी खाई
है। वहाँ धनी लोग
निर्धन को चूसना
चाहते हैं। उनसे
पूरा काम लेकर
ही वह धनी हुए हैं।
वे धन का लोभ दिखाकर उन्हें
अपने वश में कर
लेते हैं और मनमाने तरीके
से काम लेते हैं।
धनियों के पास
पूरी सुविधाएँ
होती हैं पर गरीब
के पास केवल खाने-रहने
का मामूली साधन
होता है। 6.कौन-से लोग
धार्मिक लोगों
से अधिक अच्छे
हैं? उत्तर
- जो लोग खुद को धार्मिक
कहते हैं परन्तु
उनका आचरण, व्यवहार
अच्छा नहीं है।
उनसे वे लोग अच्छे
हैं जो नास्तिक
हैं, धर्म को बहुत
जटिलता से नहीं
मानते परन्तु
आचरण और व्यवहार
में बहुत अच्छे
हैं। दुसरों
के सुख-दुख का मान
रहता है, मदद
करते हैं और सीधे
सज्जन या अज्ञान
लोगों को मूर्ख
नहीं बनाते हैं। निम्नलिखित
प्रश्न का उत्तर
(50-60 शब्दों में)
लिखिए − 1.धर्म और ईमान
के नाम पर किए जाने
वाले भीषण व्यापार
को कैसे रोका जा
सकता है? उत्तर
- चालाक लोग धर्म
और ईमान के नाम
पर सामान्य लोगों
को बहला फुसला
कर उनका शोषण करते
हैं तथा अपने स्वार्थ
की पूर्ति करते
हैं। वे धर्म के
नाम पर दंगे फसाद
कराते हैं, लोगों
को दूसरे लोगों
से लड़ाते हैं, लोगों
की शक्ति का दुरूपयोग करते
हैं। इस प्रकार
धर्म की आड़ में
एक व्यापार जैसा
चल रहा है। इसे
रोकना अतिआवश्यक
है। इसके लिए लोगों
को धर्म के अर्थ
और तत्वों को सही
तरह समझाना व उन्हें
जागरूक करना आवश्यक
है। लोगों को शिक्षित
करके साहस और दृढ़ता
से धर्म गुरूओं
की पोल खोलनी
चाहिए। 2.'बुद्धि पर
मार' के संबंध में
लेखक के क्या विचार
हैं? उत्तर
- 'बुद्धि पर
मार' का अर्थ है
बुद्धि पर पर्दा
डालकर उनके सोचने
समझने की शक्ति
को काबू में करना।
लेखक का विचार
है कि विदेश में
धन की मार है तो
भारत में बुद्धि
की मार। यहाँ बुद्धि
को भ्रमित किया
जाता है। जो स्थान
ईश्वर और आत्मा
का है, वह अपने लिए
ले लिया जाता है।
फिर इन्हीं
नामों अर्थात
धर्म, ईश्वर, ईमान, आत्मा
के नाम पर अपने
स्वार्थ की सिद्धी के
लिए आपस में लड़ाया जाता
है। 3.लेखक की दृष्टि
में धर्म की भावना
कैसी होनी
चाहिए? उत्तर
- लेखक की दृष्टि
में धर्म का निजी
मामला होता है।
प्रत्येक व्यक्ति
अपने अनुसार धर्म
को मानता है और
उसे इसकी छूट भी
होनी चाहिए। उसके
अनुसार शंख, घंटा
बजाना, ज़ोर-ज़ोर से नमाज़ पढ़ना
ही केवल धर्म नहीं
है। शुद्ध आचरण
और सदाचार 4.महात्मा गाँधी
के धर्म-संबंधी
विचारों पर प्रकाश
डालिए। उत्तर
- महात्मा गाँधी
अपने जीवन में
धर्म को महत्वपूर्ण
स्थान देते थे।
वे सर्वत्र धर्म
का पालन करते थे।
धर्म के बिना एक
पग भी चलने को तैयार
नहीं होते थे।
उनके धर्म के स्वरूप
को समझना आवश्यक
है। धर्म से महात्मा
गांधी का मतलब, धर्म
ऊँचे और उदार तत्वों
का ही हुआ करता
है। वे धर्म की
कट्टरता के विरोधी
थे। प्रत्येक
व्यक्ति का यह
कर्तव्य है कि
वह धर्म के स्वरूप
को भलि-भाँति
समझ ले। 5. सबके कल्याण
हेतु अपने आचरण
को सुधारना क्यों
आवश्यक है? उत्तर
- सबके कल्याण हेतु
अपने आचरण को सुधारना
इसलिए आवश्यक
है क्योंकि जब
हम खुद को ही नहीं
सुधारेंगे, दूसरों
के साथ अपना व्यवहार
सही नहीं रखेंगे
तब तक दूसरों से
क्या आशा रख सकते
हैं। यदि हम धार्मिक
बनेंगे अर्थात
अपना व्यवहार
अच्छा, सदाचार
पूर्ण रखेंगे
तो दूसरों को समझाना
भी आसान हो जाएगा
और धर्म का सही
अर्थ प्रस्तुत
किया जा सकेगा। निम्नलिखित
का आशय स्पष्ट
कीजिए − 1. उबल पड़ने वाले
साधारण आदमी का
इसमें केवल इतना
ही दोष है कि वह
कुछ भी नहीं समझता-बूझता
और दूसरे लोग उसे
जिधर जोत देते
हैं, उधर जुत जाता
है। उत्तर
- कुछ लोग धर्म में
विशेष आस्था रखते
हैं। धर्म के बारे
में कुछ नहीं जानते
परन्तु अंधविश्वास
रखते हैं जिससे
उसके खिलाफ़ कुछ
भी होता है तो वह
क्रोधित हो जाते
हैं और इसका फायदा
चालाक लोग,स्वार्थी
लोग उठा लेते हैं।
उनसे अपना स्वार्थ
सिद्ध कराते हैं
और वे भी उसमें
बिना विचारे जुट
जाते हैं। 2. यहाँ
है बुद्धि पर परदा
डालकर पहले ईश्वर
और आत्मा का स्थान
अपने लिए लेना, और
फिर धर्म,ईमान, ईश्वर
और आत्मा के नाम
पर अपनी स्वार्थ-सिद्धि
के लिए लोगों को
लड़ाना-भिड़ाना। उत्तर
- भारत के धर्म के
कुछ महान लोग साधारण
लोगों को भ्रमित
कर देते हैं। वे
अपना खेल, व्यापार
शुरू कर देते हैं।
वे अपने को ईश्वर
की जगह रख देते
हैं और लोगों को
ईश्वर, आत्मा, धर्म, ईमान
के नाम पर लड़ाते
हैं, अपना स्वार्थ
सिद्ध करते हैं
तथा साधारण लोगों
का दुरूपयोग
कर शोषण करते हैं। 3. अब तो, आपका
पूजा-पाठ न देखा
जाएगा, आपकी
भलमनसाहत की कसौटी
केवल आपका आचरण
होगी। उत्तर
- आने वाले समय में
केवल पूजा-पाठ
को ही महत्व नहीं
दिया जाएगा बल्कि
आपके अच्छे व्यवहार
को परखा जाएगा
और उसे महत्व दिया
जाएगा। 4. तुम्हारे
मानने ही से मेरा
ईश्वरत्व कायम
नहीं रहेगा, दया
करके, मनुष्यत्व
को मानो, पशु
बनना छोड़ो
और आदमी बनो ! उत्तर
- ईश्वर का संदेश
है कि दूसरों पर
दया करो, ममता
रखो, व्यक्ति
की भावनाओं का
सम्मान करो। मन
में यदि हिंसक
भावना हो तो वह
त्याग देना चाहिए। |
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निम्नलिखित
प्रश्नों के उत्तर
दीजिए − (क) कविता
की उन पँक्तियों
को लिखिए, जिनसे निम्नलिखित
अर्थ का बोध होता
है − 1. सुखिया
के बाहर जाने पर
पिता का ह्रदय
काँप उठता था। मेरा हृदय
काँप उठता था बाहर गई निहार
उसे यही मनाता
था कि बचा लूँ किसी भाँति
इस बार उसे 2. पर्वत
की चोटी पर स्थित
मंदिर की अनुपम
शोभा। . ऊँचे
शैल शिखर के ऊपर मंदिर था विस्तीर्ण
विशाल स्वर्ण-कलश
सरसिज विहँसित
थे पाकर समुदित रवि-कर
जाल 3. पुजारी
से प्रसाद/फूल
पाने पर सुखिया
के पिता की मनःस्थिति। भुल गया उसका लेना
झट, परम लाभ-सा
पाकर मैं। सोचा,-बेटी को माँ
के ये पुण्य-पुष्प
दूँ जाकर
मैं। 4. पिता
की वेदना और उसका
पश्चाताप। अंतिम बार
गोद में बेटी, तुझको ले न सका मैं हा! एक फूल माँ
का प्रसाद भी तुझको दे न सका मैं हा! 2 .निम्नलिखित
पंक्तियों
का आशय स्पष्ट
करते हुए उनका
अर्थ-सौंदर्य
बताइए − (क) अविश्रांत
बरसा करके भी आँखे तनिक नहीं रीतीं (क) आँखें
हमेशा रोती
रहती हैं, उनसे पानी
बरसता रहता है, आँसू
कभी समाप्त नहीं
होते हैं। इन पंक्तियों
में निरंतर रोने की दशा
का वर्णन है। (ख) बुझी पड़ी
थी चिता वहाँ पर छाती धधक उठी
मेरी (ख) बेटी
की चिता तो जलकर बुझ
गई। उसको देखकर
सुखिया के पिता
के ह्रदय में दुख-वेदना
की चिता जलने लगी।
अर्थ की सुंदरता
इसमें है कि एक
चिता का बुझना
और दूसरी चिता
का ह्रदय में जलना
इसमें पिता की
वेदना का वर्णन
है। (ग) हाय!
वही चुपचाप पड़ी
थी अटल शांति-सी
धारण कर (ग) जब
सुखिया बुखार
से पीड़ित
थी तो वह शांति
से लेट गई। इस तरह
चुपचाप शांत होकर
लेटना आशंका को
जन्म देता है।
यहाँ नटखट बालिका
का शांत भाव से
पड़े रहने की दशा
का वर्णन है। (घ) पापी
ने मंदिर में घुसकर किया अनर्थ
बड़ा भारी (घ) भक्तों
ने सुखिया के पिता
को अछूत कहकर
उसका भारी अपमान
किया। उसका मंदिर
में आना उन्हें
अच्छा न लगा। वे
उसके आने के प्रयास
को अनर्थ बताने
लगे। (ख) बीमार
बच्ची ने क्या
इच्छा प्रकट की ? (ख) बीमार
बच्ची का नाम सुखिया
था। वैसे तो वह
बहुत चंचल स्वभाव
की थी परन्तु एक
दिन वह महामारी
की चपटे में आकर
ज्वर ग्रस्त हो
गई थी। ज्वर से
पीड़ित होकर
बीमार बच्ची ने
अपने पिता के सम्मुख
यह इच्छा प्रकट
की कि मुझे देवी
माँ के प्रसाद
का एक फूल लाकर
दे दो। संभवत: उसे
यह विश्वास था
कि माँ के प्रसाद
का फूल पाकर
वह अच्छी हो जाएगी। (ग) सुखिया
के पिता पर कौन-सा
आरोप लगाकर उसे
दंडित किया गया ? (ग) सुखिया
के पिता पर यह आरोप
लगाकर, उसे दंडित किया
गया था कि उस पापी
ने मंदिर में घुसकर
भारी अनर्थ किया
है तथा मंदिर की
चिरकालिक पवित्रता
को कलुषित कर दिया
है। इसने देवी
का महान अपमान
किया है। सुखिया
के पिता पर यह आरोप
लगाकर उसे न्यायालय
ले जाया गया। वहाँ
उसे सात दिन के
कारावास का दंड
दिया गया। सुखिया
के पिता ने सिर
झुकाकर इस दंड
को स्वीकार कर
लिया। (घ) जेल
से छूटने के
बाद सुखिया के
पिता ने अपनी बच्ची
को किस रूप में
पाया ? (घ) जब
सुखिया का पिता
जेल से छूटकर
घर पँहुचा
तब वहाँ उसने बच्ची
को नहीं पाया।
उसे पता चला कि
उसके बंधु उसे
मरघट ले जा चुके
हैं। वह बच्ची
को देखने दौड़ा
हुआ मरघट चला गया।
वहाँ जाकर
उसने देखा कि लोग
सुखिया को जला
चुके हैं। तब सुखिया
के पिता ने उसे
राख की ढेरी के
रूप में पाया। (ङ) इस
कविता का केन्द्रीय
भाव अपने शब्दों
में लिखिए। (ड़) इस
कविता का केन्द्रीय
भाव यह है कि छुआछूत
मानवता के नाम
पर कलंक है। जन्म
के आधार पर किसी
को अछूत मानना
एक अपराध है। मंदिर
जैसे पवित्र स्थानों
पर किसी के प्रवेश
पर रोक लगाना सर्वथा
अनुचित है। धर्म
के ठेकेदारों
के साथ-साथ न्यायालय
ने भी सुखिया के
पिता के साथ अन्याय
किया। इस प्रकार
के व्यवहार को
किसी भी हालत में
उचित नहीं कहा
जा सकता है। कवि
चाहता है कि इस
प्रकार की सामाजिक
विषमता का शीघ्र
अंत हो। सभी को
सामाजिक एवं धार्मिक
स्वतंत्रता मिलनी
ही चाहिए। |
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नए इलाके में |
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खुशबू
रचते हाथ |
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